"परिवार, समाज, देश के भविष्य बच्चे हैं और स्वयं एक बच्चे का भविष्य शिक्षक हैं।"                                                    --राजीव


इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।

गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।



हमारे जीवन में एक शिक्षक का वही महत्व है, जो एक पथिक के लिए सड़क का होता है और मिट्टी के लिए कुम्हार का होता है। इस समस्त संसार में जितने भी धर्मशास्त्र, दर्शन, सिद्धान्त प्रतिपादित हैं, इन सबके पीछे एक शिक्षक की ही सद्प्रेरणा रही है। चाहे वो शिक्षक कोई और वो हो या फिर हम स्वयं अपनी अंतरात्मा की प्रेरणा से स्वयं को शिक्षित करें।


आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हमारे पास यह सुअवसर है कि हम अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ क्षण निकाल कर उनको नमन करें, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करें जिन्होंने हमें वह सब कुछ सिखाया, जिसकी हमें ताउम्र आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक गुरु आचार्य प्रशांत कहते हैं, "जो कुछ भी जिंदगी में कीमती है, इज्जत के लायक है, उसको अगर तुम कीमत देते हो, आदर देते हो , तो उसका तुम कोई बहुत भला नहीं कर देते, उसका कोई हित नहीं हो जाता। क्योंकि वो ऊँचा है और वो ऊँचा है इसीलिए तो कीमती है और जो पहले से ही ऊँचा है उसे हमसे क्या चाहिए, लेकिन अगर हम उसे इज़्ज़त देते हैं, कीमत देते हैं, लगातार याद रखते हैं तो हमारा जरूर भला हो जाता है।"


शिक्षक दिवस भारत के द्वितीय किंतु अद्वितीय राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर के दिन मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन स्वतंत्रता पूर्व एवं स्वत्रंत भारत के एक महान शिक्षाविद्, धर्म, वेद एवं वेदांत के प्रकांड विद्वान एवं एक उत्कृष्ट शिक्षक रहे। इनकी इन्हीं उपलब्धियों एवं विद्वता की  वजह से ब्रितानिया हुकूमत ने इन्हें सन् 1932 ई० में नाइटहुड की उपाधि से विभूषित किया एवं स्वतंत्रता पश्चात सर्वप्रथम भारतरत्न से इन्हीं को अलंकृत किया गया।



डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 ई० को तमिलनाडु के एक ग्राम तिरुतनी में हुआ था। ये बचपन से ही बहुत मेधावी छात्र रहे, उन्होंने बारह साल की उम्र में ही बाइबल और स्वामी विवेकानंद के दर्शन का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। डॉ राधाकृष्णन स्वामी जी के विचारों से बहुत प्रभावित रहे। आगे चलकर इन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। दर्शनशास्त्र के विषय में अपनी विद्वत्ता के कारण ये सिर्फ भारत में ही नहीं वरन् समस्त विश्व में प्रसिद्ध हुए। इन्होंने कई वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया तत्पश्चात इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद को शुशोभित किया।

डॉ राधाकृष्णन एक शिक्षाविद् के साथ साथ बेहतरीन लेखक भी रहे। इन्होंने शिक्षा, शिक्षक एवं दर्शन से सम्बंधित कई पुस्तकें लिखीं, जिसमें भारत दर्शन प्रमुख हैं।

17 अप्रैल, 1975 ई० को अपने ज्ञान, दर्शन एवं विद्वत्ता से शिक्षाजगत् के आभामण्डल में चमकने वाला यह सितारा पंचतत्व में विलीन हो गया।

इस भारतीय मनीषी के जन्मदिवस के अवसर पर समस्त शिक्षकों को सत्-सत् नमन।।🙏🙏


राजीव