शांति संसार का संगीत है- अंजलि ओझा


मार्टिन लूथर किंग का एक स्वप्न था, दुनिया में शांति स्थापित करना। उन्होंने तीन अनिष्टकारी चीज़ों को दुनिया में अशांति का कारण बताया


१. प्रजातीय विभेद ( Evil of Racism)

२. निर्धनता ( Evil of Poverty)

३. युद्ध ( Evil of War)


अशांति समरसता, सुरक्षा, विकास आदि के लिए घाघ जैसी है। ज्यों ही कोई समाज अशांति की भेंट चढ़ता है, त्यों ही हिंसा द्वेष, आगजनी, कटुता का बोलबाला होने लगता है। जैसे व्यक्ति के धर्मच्युत होने पर उसकी श्री स्वतः नष्ट हो जाती है , उसी के समान शांति का पलायन समाज व राष्ट्र श्रीहीन कर देता है।


मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिकी धरती पर नस्लीय विभेद का घिनौना रूप देखा था तब उन्होंने तय किया कि चमड़ी के रंग के आधार पर मानव में काले और गोरों का भेद मिटाया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने कठोर संघर्ष किये। यद्यपि यह अत्यंत दुःखद है कि आज भी अमेरिका नस्लीय दोगलेपन के कारण जल रहा है । आज भी वहाँ दो रंगों के लिए अलग अलग कानून है, परिणामतः आये दिन नस्लीय अहंकार के मुख से अमेरिका को जलाने के लिए आग निकलती रहती है।


फ्रांस की क्रांति की नींव भूख के गड्ढे पर रखी गई थी। गरीबी और भूख दोनों का रिश्ता अचल-अटल है। गरीब आदमी सबसे पहले भोजन चाहता है, चिपके हुए पेट और सुखी अंतड़ियाँ लेकर वह याचना करता है। जब उसकी याचना नहीं सुनी जाती, तब वह वर्साय का महल ढहाता है, लुई को भी खदेड़ कर मारता है और रानी एन्त्वानबेथ के हाथ से ब्रेड भी छीन लेता है। गरीब की भूख शांत होते ही घर, परिवार, समाज, राष्ट्र सब ओर शान्ति छा जाती है।


हमारे मनीषियों ने युद्ध को विनाश का मार्ग कहा है। इतिहास में युद्धरत अनेक राष्ट्रों का मलबा जमींदोज़ है। साथ ही युद्ध की विभीषिका के काले अध्यायों से पन्ने पुते हुए हैं।  युद्ध जो कि कई वजहों से लड़े जाते हैं, कभी विस्तार के लिए, कभी लूट के लिए, कभी बदले के लिए, कभी अहंकार की तुष्टि के लिए तो कभी शक्ति प्रदर्शन के लिए। लेकिन जब भी शस्त्र शस्त्रों से टकराते है, तो केवल नाश ही छाता है। एक दूसरे का अस्तित्व मिटा देने की धुर आकांक्षा शवों का अम्बार लगाती है। धरती से जीवन के कुसुमित किसलय को मसल देती है। आज अधिकांश राष्ट्र परस्पर "युद्धम देहि!" का उद्घोष कर रहे हैं। परमाणु शक्ति सम्पन्न, समर्थ प्रौद्योगिकी व बाहुओं की शक्ति पर युद्धों की नींव रखी जा रही है। संसार विनष्ट होने की ओर बढ़ रहा है।


ऐसे में अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस की महत्ता अकथ्य हो जाती है। शांति संसार का मूल संगीत है। आज हम जितनी भी व्यग्रता, क्रोध, लालसा, भोग, शोर, अपराध देख व सुन रहे हैं, उसका कारण यही है कि हम शांति नहीं खोज पाए हैं। हमनें सुखों को भौतिकता का पैरहन पहना दिया है। अपार धन-सुविधा, ढेरों ज़मीन, ढेरों सुविधाएं। हम सोचते हैं कि यदि पड़ोसी की जमीन का कुछ इंच टुकड़ा हमारा हो जाये तो, हमारा हिस्सा बढ़ जाएगा, हम सुखी हो जाएंगे। हमें भूखों-नंगों की पीड़ा नहीं दिखती। एक दूसरे की प्रगति का उत्सव मनाने के बजाय हम शोक मनाते हैं। हम सह अस्तित्व से दूर होते जा रहे हैं। हम केवल स्व उत्थान में ही निमग्न हैं, लोक की सुध हमें नहीं है।



देशों के बीच द्वेष एवं शत्रुता का सबसे बड़ा कारण यही है कि वे आपसी सहयोग नहीं करना चाहते बल्कि आगे बढ़ते हुए को टंगड़ी मारकर गिरा देना चाहते हैं। छद्म युद्ध से, छल से, षड्यंत्र से किसी राष्ट्र की उठती हुई शक्ति कुचल देना ही आज की युद्ध नीति है। साम्राज्यवाद का अंत शायद कभी नहीं हो सकेगा। क्योंकि ज़मीन की भूख, प्रभुत्व की भूख कभी मिट नहीं सकती। आज दुनिया जिस तरह से कठिनाई का सामना कर रही है, उसमें सभी शासकों को अपनी निजी महात्त्वाकांक्षाओं का परित्याग कर साथ आना चाहिए। इस आपदा से निपटने के लिए एक दूसरे का सहयोग लेना-देना चाहिए, किंतु नहीं! इस समय भी राष्ट्रों की कुटिल नीतियां ही प्रभावी हैं। इस समय जन-जन का जीवन संकट में है, उसे बचाना जरूरी है, लेकिन इसी समय सीमाओं पर अघोषित युद्ध की तैयारी चल रही है। कोरोना की आपदा को युद्ध का अवसर बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। भारत की बंटी हुई चेतना को लाभ चीन इसी तरह उठाना चाह रहा है। उसकी विस्तारवादी नीति दक्षिण एशिया खासकर भारतीय उपमहाद्वीप को गर्त में धकेलना चाहती है। स्वंय को बुद्ध एवं बुद्धत्व का उत्तराधिकारी कहने वाला चीन शान्ति, सहधर्म, सद्भाव और उचित राजनैतिक आचरण कभी न सीख सका।


हठधर्मिता व्यक्ति की हो या राष्ट्र की सदैव अशुभ ही होती है। संसार को शांति की आवश्यकता है। राष्ट्रों की मिथ्या अहंवादिता, व्यक्ति-व्यक्ति भेद और ग़रीबी-अमीरी की असंतुलित सरंचना पूरी दुनिया को अग्नि की भेंट चढ़ाने को काफी है। आज दुनिया के कोने-कोने में किसी न किसी में विवाद पर घर, गाड़ियाँ, संपत्तियाँ राख कर दी जा रही है।


यदि मार्टिन लूथर किंग आज होते तो वे अशांति के एक चौथे कारण को भी अपनी सूची में अवश्य शामिल करते।


४. धर्म ( Evil of Religion) : यद्यपि युद्ध के कारणों में धर्म स्वतः मिल जाता है, लेकिन आज धर्म युद्ध का एक कारण भर नहीं रह गया है। धर्म से बड़ा विभेदकारी कोई अन्य तत्व नहीं है। हमारे देश में धर्म के नाम पर होने वाली फूट से  हम चिर परिचित तो हैं ही। अपने धर्म विस्तार के लिए विभिन्न धर्मानुयायी साम-दाम-दंड-भेद सभी विधाओं का प्रयोग करते हैं। धर्म की अफीम ने लोगों में अहिंसा का नशा भर दिया है।


शांति और सुख साझे की संकल्पना है। मेरा सुख आपका दुख न बने और न ही आपका सुख मेरा दुख बने। व्यक्तियों को परस्पर उस बेल और वृक्ष की तरह जीना चाहिए, जो एक दूसरे को आश्रय प्रदान करते हैं, एक दूसरे का श्रेष्ठ हित करते हैं, एक दूसरे के साहचर्य का आनन्द मनाते हैं। यह तभी सम्भव है जब समूची धरा के शासक और राष्ट्र हिंसा, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध, प्रतिकार, घात-परिघात जैसे घातक व अकल्याणकारी भावों से मुक्त हो।


प्राणियों में सद्भावना हो!

विश्व का कल्याण हो!


ॐ शांतिः शांतिः शांतिः!!



अंजलि ओझा

Post a Comment

0 Comments